मेडिकल की दुनिया बेहद जटिल है। कब किसको किस चीज से परेशानी हो, यह कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही मामला दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में सामने आया है। नौ साल की बच्ची का मामला सामने आया है कि उसे एक बेहद दुर्लभ दुर्घटना की बीमारी है। यह मामला क्लिनिकल न्यूरोसाइकोलॉजी (क्लीनिकल न्यूरोफिजियोलॉजी) के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। इस मामले को पढ़ा सरगंगाराम अस्पताल डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. पीके सेठी ने अंजाम दिया है। जानिए, यह पूरी कहानी कुछ इस तरह है। एक नौ साल की बच्ची अपने हाथों में लगा रही है। महंदी लगाने के कुछ ही मिनटों के अंदर वह बेहोश हो जाता है।
इसे परिवार वाले परेशान हो जाते हैं। फिर वे डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर भी इस कहानी पर पहली नजर में नहीं देख सकते। फिर एक दिन फिर बच्ची के साथ वापस ऐसा होता है। वह गंगाराम अस्पताल पहुंच गया है। वहां न्यूरोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. पीके से मिलते हैं और वह उसका इलाज शुरू करते हैं। दरअसल, डॉ. सेठी ने बताया कि नौ साल की बच्ची को अचानक से बेहोशी आ गई और वह करीब 20 सेकंड तक बेहोश हो गई। पहली घटना के करीब एक साल बाद लगाने के कारण बच्ची के साथ दो बार ऐसा हुआ। फिर उसी में चेकअप के लिए अस्पताल लाया गया।
डॉ. इसके अनुसार यह रेफ्लेक्स एपिलेप्सी (Reflex Epilepsy) का एक दुर्लभ मामला है। News18 हिंदी के साथ खास बातचीत में डॉ. सेठी के दावे हैं कि रेफ्लेक्स एपिलेप्सी एक विशिष्ट रवैया अपनाने वाला है। इसमें रोगी को किसी विशेष वस्तु या चीज से परेशानी होती है और इसके संपर्क में आकर वह अपना दावा करता है। उन्होंने इस बात को विस्तार से समझाते हुए कहा कि पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है, लेकिन सही इलाज के बिना कई बार रोगी को चिपकाने पर दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है और वह अपनी जान पहचान दिखाता है। उन्होंने बताया कि रेफ्लेक्स एपिलेप्सी कई तरह की हो सकती है। किसी व्यक्ति को गर्म पानी के कारण संपर्क हो सकता है। उन्होंने इलाहाबाद से एक महिला मरीज के बारे में बताया कि वह गर्म पानी से रेफ्लेक्सी था। नहाते समय सर पर गर्म पानी डालने से वह बेहोश हो गया था। इसी तरह किसी भी मृत व्यक्ति को पुराने पानी से रेफ्लेक्स एपिलेप्सी हो सकता है।
उन्होंने बताया कि रेफ्लेक्स एपिलेप्सी का एक ही इलाज है। मरीज में यह पता लगाना कि उसे किस चीज से परेशानी है। उन्होंने बताया कि नौ वर्षीय बच्चियों के मामले का हमने गहराई से अध्ययन किया। बच्ची के दिमाग का इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी (इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राफी) किया गया। यही जांच है जिससे किसी मरीज में एपिलेप्सी पता लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जिस तरह हम दिल की जांच के लिए इको टेस्ट करवाते हैं, उसी तरह दिमाग की जांच के लिए यह टेस्ट किया जाता है। यहां सबसे बड़ी बात यह है कि जांच कौन व्यक्ति कर रहा है। जांच करने वाला डॉक्टर अनुभवी हो तो वह इस चीज को आसानी से पकड़ सकता है।
नौ साल की बच्ची के मामले में डॉ. सेठी ने यह तरीका अपनाया। उन्होंने अपने सामने आधुनिक लैब में बच्ची के हाथों पर लगाम लगाई। उसके साथ ही उसे ब्रेन की इलेक्ट्रोएंसेफेलोग्राफी भी की जा रही थी। फिक्सिंग लगाने के बाद जब बच्ची का हाथ उसके करीब लाया गया तो वह बेहोश हो गई। इस दौरान उनके दिमाग की डिटेलिंग की गई। फिर उन्होंने इलेक्ट्रोएंसेफेलोग्राफी रिपोर्ट के अध्ययन में पाया गया कि महंगी की गंध से ही बच्ची के दिमाग में एक तरह का शार्ट सर्किट हो जाता है और वह बेहोश हो जाती है। यह दुनिया में आपका पहला मामला है। उन्होंने बताया कि खेती की गंध के लिए एक डाउनलोड (प्रोत्साहन) की तरह था। इस कारण उसके दिमाग में एनाटोमिक नेटवर्क सक्रिय हो गया। गलती का कारण पता चल जाने के बाद उसे सोडियम वालप्रोएट (सोडियम वैल्प्रोएट) लेने और उसे एक दिन में रहने की सलाह दी गई। अब बच्ची ठीक है और उसे दौरा पड़ने से अब पूरी तरह से कोई शिकायत नहीं है।
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पहले प्रकाशित : 08 फरवरी, 2023, 13:18 IST